तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility) क्या है?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता प्रबंधन को और अधिक कुशल बनाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के लिए तरलता समायोजन सुविधा (LAF) का विस्तार करने का निर्णय लिया है। बैंकिंग क्षेत्र सुधारों पर नरसिम्हम समिति की सिफारिशों के आधार पर 1998 में RBI में LAF की शुरुआत की गई थी।

तरलता समायोजन सुविधा क्या है?

दरअसल यह एक मौद्रिक नीति उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौते या रेपो के माध्यम से अस्थायी नकदी की कमी को हल करने में सक्षम बनाता है। यह नकदी जुटाने के लिए रिवर्स-रेपो के माध्यम से आरबीआई को ऋण दे सकता है।

अन्य उपकरण

आरबीआई देश में तरलता के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए चार उपकरणों का उपयोग करती है, वे हैं : नकद आरक्षित अनुपात (CRR), तरलता समायोजन सुविधाएं (रेपो दर और रिवर्स रेपो दर सहित), वैधानिक तरलता अनुपात और ओपन मार्केट ऑपरेशन।

तरलता समायोजन सुविधा के मुख्य घटक

तरलता समायोजन सुविधा के दो मुख्य घटक रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट हैं। रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसा उधार लेते हैं। धनराशि उधार लेते समय, बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक (collateral) के रूप में रखते हैं। रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI बैंकों से पैसा उधार लेता है। रिवर्स रेपो प्रणाली से तरलता को अवशोषित करने में मदद मिलती है।

नरसिम्हम समिति

नरसिम्हम समिति ने मूल रूप से बैंकिंग और वित्तीय प्रणालियों के कामकाज में बदलाव की सिफारिश की थी। इस समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें कीं थी :

  • नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात के उच्च अनुपात को कम किया जाना चाहिए।
  • इस समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या कम करने और देश में तीन से चार बड़े बैंकों को अंतर्राष्ट्रीय बैंक में विकसित करने की सिफारिश की थी।
  • इसने एसेट रिकंस्ट्रक्शन फंड की स्थापना की सिफारिश की थी।
  • इस समिति ने म्युचुअल फंड, मर्चेंट बैंक, लीजिंग कंपनी, फैक्टर कंपनी आदि जैसे वित्तीय संस्थानों की निगरानी के लिए नई एजेंसी की स्थापना करने की सिफारिश की थी।

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