असम स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन करेगा
असम सरकार ने राज्य के पांच स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करने की अपनी योजना की घोषणा की है। इस पहल का उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सांस्कृतिक पहचान, वित्तीय मामले, कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण सहित विभिन्न पहलुओं में इन समुदायों के विकास और उत्थान का समर्थन करना है।
मुख्य बिंदु
- सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण पांच स्वदेशी मुस्लिम समुदायों पर ध्यान केंद्रित करेगा: गोरिया, मोरिया, देशी, सैयद और जोल्हा।
- सर्वेक्षण के निष्कर्ष सरकार को इन समुदायों के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षिक विकास के उपायों को लागू करने में मार्गदर्शन करेंगे।
- राज्य कैबिनेट ने पहले ही इन पांच मुस्लिम समुदायों के लिए “स्वदेशी” दर्जे को मंजूरी दे दी है।
- यह निर्णय बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण के निष्कर्ष जारी करने के बाद आया है, जिसमें राज्य की जनसंख्या संरचना के बारे में महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आए हैं।
आलोचकों का दृष्टिकोण
- आलोचकों का तर्क है कि सर्वेक्षण में सभी समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए, विशेष रूप से पिछड़े के रूप में वर्गीकृत समुदायों को।
- उनका तर्क है कि केवल स्वदेशी मुस्लिम समुदायों के लिए चयनात्मक सर्वेक्षण करना सरकार की एक विभाजनकारी रणनीति है।
- इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सर्वेक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान मौजूद हैं, जिन पर विचार किया जाना चाहिए।
पृष्ठभूमि
स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करने के मुद्दे पर अतीत में चर्चा की गई थी, जिसकी योजना सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की थी।
2011 की जनगणना के अनुसार असम की मुस्लिम आबादी कुल जनसंख्या का 34.22 प्रतिशत थी।
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